हिमालय पर्वत पर स्थित देव भूमि हिमाचल प्रदेश के स्पिती वैली की रोमांचक यात्रा का दूसरा दिन – कुफरी से चितकुल

यात्रा का दूसरा दिन,उत्साह, उमंग हृदय में, अनुपम दृश्य प्रकृति का, समय पर निकलना जरूरी था, क्योंकि कुफरी से चितकुल भी रात होने से पहले पहुँचना जरूरी था। हिमाचल प्रदेश की किन्नौर घाटी में स्थित, भारत का आखिरी गाँव,स्वर्ग सा मनोरम, पूर्व में तिब्बत, पश्चिम में कुल्लू, उत्तर में स्पिती घाटी और दक्षिण में गढ़वाल,बस्पा नदी के तट पर , भारत चीन के बॉर्डर पर बसा, समुद्री तल से 3450 मीटर की ऊँचाई पर है, जहां पहुँचने के लिए कुफरी से लगभग नौ घंटे का लंबा पहाड़ी सफर तय करना था, कुदरत की अद्भुत छटा बिखेरे हुए,घाटी में देवदार के लंबे-चौड़े आसमाँ को छूते हुए विशाल वृक्ष और सूरज का अपनी किरणों के साथ सप्त रंग बिखेरना हमारे अंतर्मन में सकारात्मक ऊर्जा भरने में पूरी तरह तत्पर था और परमात्मा की शक्ति पर जिनको भरोसा होता है, वो हर बाधाओं को पार कर पाते हैं, आगे का जोखिम उठाने के लिए हमारा मन शक्तिशाली हो गया था।

होटल के मैनेजर ने कुफरी में हमारी कुछ प्यारी सी फोटो उतारी, नाश्ते के लिए हमें सेंडविच और इडली चटनी पैक करके दे दी और अपना भरपूर सहयोग प्रदान किया, वहाँ से हम खुशी-खुशी रवाना हो गए और धीरे-धीरे उसी कच्चे रास्ते को पार करके हाईवे पर आ गए, जिसे तय करने में पिछली रात भरी ठंड में भी पसीने आ गए थे, क्योंकि दिन की रोशनी में अब सब कुछ साफ नजर आ रहा था, पर एक बात बताऊँ, ये किसे मालूम था कि ये सड़कें जो हम देख रहे थे, हिमाचल में तो ये कच्ची सड़क का बस मात्र ट्रेलर है।

समस्याएं कहाँ पूछ कर आती है और तकलीफें न हो तो रोमांच भी कैसा! गूगल ने बायीं ओर का रास्ता बताया,जबकि हमें दायीं ओर जाना था, वैसे तो अक्सर गूगल पर भरोसा किया जा सकता है, पर कई बार गूगल खुद समझ नहीं पाता है कि वो कहाँ पर है, पर खास बात यह थी कि उसने हमारे गंतव्य स्थान का समय बढ़ाना शुरू किया तो हम अलर्ट हो गए, अतः स्थानीय निवासियों से पूछा तो पता चला कि उल्टी दिशा की ओर चले गए हैं, यहाँ मेरी सुपुत्री ने भी फ़ोन पर कहा कि आप गलत दिशा की ओर आगे बढ़ रहे हैं, क्योंकि वो हमे बराबर जयपुर से ट्रैक कर रही थी,कमाल की टेक्नोलॉजी हो गई है ना, स्पिती की यात्रा पर जाना उसी की देन है,उसने हमें हिम्मत न दी होती तो हम नहीं जा सकते थे,उसे हमारा दिल से आशीर्वाद! खैर, ‘देर आए दुरस्त आए’ और बहुत जल्द ही हमने वापस सही ट्रैक पकड़ लिया।

करचम, सांगला, रक्षम जैसे न जाने अनेकों छोटे-छोटे गांव आते गए,जिन्हें हम चाव से देखते रहे। पहाड़, घाटी, हरियाली, आसमान,गांवों की अनछुई प्राकृतिक छटा देखते हुए आगे बढ़ते रहे और मंज़िल तो ठीक है पर हमें तो रास्तों से ही इश्क़ हो गया। अंधेरा होने लगा था, कुल मिलाकर 225 किलोमीटर जिसमें 41 किलोमीटर का रास्ता बिल्कुल कच्चा टूटा-फूटा, ऊबड़-खाबड़, चितकुल से दो किलोमीटर पहले तक भी हमें ऐसा लग रहा था मानो कोई नहीं रहता है यहाँ पर, भूरे मटमैले काले ऊँचे बड़े पहाड़ों के बीच में अलग ही रोमांच का अनुभव हो रहा था, जब चितकुल पहुँचे तो गांव में बिजली भी नहीं थी, यहाँ क्या पूरे हिमाचल में बिजली और जल सबसे बड़ा राजनीतिक मुद्दा है, ‘हर घर में बिजली’ और ‘हर नल में जल’ यही स्लोगन लिखा हुआ दिखाई देता है। अधिकतर घरों ने तो सोलर प्लांट लगाए हैं,जिससे उन्हें पर्याप्त बिजली मिले,फिर भी जल और बिजली इस राज्य की सबसे बड़ी चुनौती है।

चलिए,पूरे गाँव में बिजली नहीं थी, काफी देर बाद होटल में रोशनी दिखाई दी, तब जाकर हमने अपने रूम में चेक इन किया। इतनी ज्यादा ठंड थी कि हम कांप रहे थे, माइनस टू का तापमान,फरफराती सर्द हवा, , मुश्किल से होटल में शाकाहारी भोजन मिला, पर हाँ इतना स्वादिष्ट खाना कि घर की याद दिला दी, वहाँ की मैनेजर बहुत सरल, सीधी और हँसमुख थी, जिसके मधुर स्वभाव से हम बहुत प्रभावित हुए। होटल की औपचारिकता के कुछ देर बाद खाना खाकर हम सोने चले गए, आधी रात को नींद खुली तो क्या हुआ, बताती हूँ आपको अगले पोस्ट में।