कौन से जीवन का कसूर
भाग्य क्यूँ हुआ मजबूर
संसार चक्र है नासूर
बाल मजदूर
कभी बेचता गुब्बारे
कभी बेचता पतंग
बेहाल फटेहाल जिन्दगी
है ख़ुद से ही तंग
छोटू दो कप चाय लाना
रिश्ता इन शब्दों से बड़ा पुराना
नन्हें हाथों से जूठे बर्तन
धीरे-धीरे होता परिवर्तन
गरीबी शोषण बाल श्रम आधार
मानवीय कलंक चेतना हीन
निरक्षरता स्वार्थी सोच बनाता
जीवन पर्यंत इनको कामगार
अधखिले इन फूलों को मत तोड़ो
उड़ने दो आसमाँ में मत रोको
दे दो हाथों में किताबें पढ़ने दो
भारत का शिक्षित नागरिक बनने दो ।
2020-06-13