एक सत्य – अत्यधिक आर्थिक तंगी चोरी, लूट खसोट, ठगी,छलावा,जालसाजी़ व डकैती को जन्म देती है।
इससे उबरने के लिए एक दूसरे पर विश्वास करके काम देना चाहिए।
एक छोटा सा वाक्या आप सभी से सांझा करती हूँ, कई वर्षों से एक इस्त्री करने वाला युवा धोबी है, जिसने अपनी ईमानदारी से लोगों को सेवाएं प्रदान की है,अब तक उसके द्वारा एक ही बात सुनने को मिलती थी कि भाभीजी मरने को फुर्सत नहीं है, इतना काम है, अपने पूरे घर को काम पर लगा रखा था, माँ बाप भाई बहन पत्नी… और सदैव चहकता ही नज़र आता था, पैसे दे दो तो ठीक है, अन्यथा कोई परवाह नहीं।इस कोरोना के बाद से जैसे लोगों ने घर में घुसाना ही बंद कर दिया।अब न काम है और न ही पैसे… घर चलना मुश्किल हो गया है,चेहरे पर दुख, हताशा और मुर्दानगी दिखने लगी है,रौनक ही ख़त्म हो गई है… अब ज़रा सोचिए ये सिलसिला और परिस्थिति को वह कब तक झेल पाएगा!
पता नहीं ऐसा ही अनगिनत लोग जिन्दगी में स्वयँ को हारे हुए खिलाड़ी जैसा महसूस करने लगे हैं, टूट कर बिखर रहे हैं, बहुत भयानक मंजर न देखने को मिले उससे पहले ही गहरे समुंदर में सब एक दूसरे का हाथ थाम कर आगे बढ़े और किनारे पर सुरक्षित पहुँच जाए, इस आर्थिक मंदी से बाहर निकलने का रास्ता स्वयँ बनाए। रोजगार दीजिए, धन के अवरुद्ध आवागमन को सुगम बनाने में सभी अपनी सामर्थ्यता के अनुरूप पुरज़ोर प्रयास कीजिए।
छोटा प्रयास आपका,
बड़ा प्रयास सरकार का।
एक और एक दो नहीं ग्यारह बनेंगे।