एक दिन अनपढ़ कवि मुझसे मिले कहा कविता कहता हूँ मैं दिल से। लिखना पढ़ना मेरे भाग्य में न था माता पिता का बचपन में सौभाग्य न था। अंदर से एक ज्वाला जगी थी कवि बनने की आशा लगी थी। जहाँ चाह होती है वही तो राह होती है कुछ बनने की कसक में ही तो आह होती है। अनपढ़ अवश्य हूँ पर गूँगा बहरा नहीं हालातों को देख रहा हूँ अभी मरा नहीं। अनपढ़ नेता अँगूठा छाप देश को चला रहे हैं भोली भाली जनता को बहला फुसला रहे हैं। मानवता की आवाज़ में गूँज होती है मेरी हर कविता पाठ से मंच पर धूम होती है। मैं चौथी पास ही कह कर कविता की शुरूआत करता हूँ पब्लिक मुझ पर हँसती है, मैं अपना परिहास करता हूँ। अनपढ़ होकर भी कवि बनने का इतिहास रचाया है शब्द ही नहीं अर्थों का एहसास समझाया है। अनपढ़ हूँ पर लाचार नहीं हूँ देश का मैं ग़द्दार नहीं हूँ। डिग्रियाँ नहीं पर अपनी गृहस्थी चलाता हूँ अपनी इस वास्तविकता का सबको हाल बताता हूँ। शिक्षा से ही जीवन महान बनता है शांति, सुकून सफ़लता समृद्धि ज्ञान बढ़ता है।
2019-11-13
अनपढ़ कवि : बहुत सुंदर कविता 👌👌
एक शिक्षित व्यक्ति को 1 करोड़ की लॉटरी निकली ।वह पैसे लेने गया। उसे कहा गया कि आपको 65 लाख मिलेंगे बाकी 35 लाख टैक्स के कट जाएंगे।अहंकार की चादर ओढ़े उसने कहा कि अगर देने हो तो पूरे 1 करोड़ दो अन्यथा ये टिकिट वापस लो और मेरे 10 रुपये वापस दो। महाराष्ट्र की राजनीति में ऐसा ही कुछ चल रहा है।
अगर एक शिक्षित डिग्रियां लेकर भी अपनी आजीविका चलाने में या अपने पद का मान रखने में सक्षम न हो तो हम उसे अनपढ़ की श्रेणी में रखेंगे वही कोई अनपढ़ अपनी आजीविका चलाने की लिए अपने परिहास को झेलने की क्षमता रखते हुए अगर किसी का दिल जीतने की कला में सक्षम हो तो वह शिक्षित से कम नही।
जय श्री कृष्ण