गिर कर थपेड़े वक़्त के खाती रही हूँ मैं फिर से चलने का साहस बढ़ाती रही हूँ मैं मंज़िल की ओर निरंतर जाती रही हूँ मैं हर पल हर दिन नई ऊर्जा लाती रही हूँ मैं। आत्मबल से पूरित हो जाए मेरा पूरा जीवन उत्साह उमंग आनंदित उल्लासपूर्ण हो मेरा मन धुँधले हो जाए निराशा के काले घने बादल विश्वास प्रेम और साहस के झरने बहे कल कल। अब कहाँ रुकती हूँ मैं कंटीली राहों में मिट्टी से बना दूँ सोना ऐसा ही चाहूँ मैं यही तो है मेरे हौसलें और जज़्बे का नूर कामयाबी जरूर मिलेगी नहीं रहेगी अब मुझसे दूर।
2020-05-23